भोजपुरी सिनेमा में जब भी खलनायकों की बात होती है, तो एक नाम सबसे ऊपर आता है – संजय पांडेय। एक ऐसा चेहरा जिसने नकारात्मक किरदारों को इस कदर जीवंत किया कि दर्शक उनसे नफरत करने लगे, लेकिन वहीं उनके अभिनय की प्रतिभा को भी सलाम करने लगे। आज हम जानेंगे संजय पांडेय के संघर्ष, सफलता, और उनके जीवन की कुछ अनसुनी कहानियाँ, जो उन्हें एक आम कलाकार से भोजपुरी सिनेमा का ‘विलेन किंग’ बना देती हैं।
संजय पांडेय किसी भी फिल्म में अदाकारी करते हैं तो उसी इस तरह से निभाते हैं मानों उस किरदार को जिंदा कर दिया हो। इनकी फिल्में सबसे अलग और जरा हटके हैं। फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म स्टेज में इनकी कई फिल्में भी आई हैं, जो बेहद शानदार हैं। उदाहरण के लिए आप इनकी फिल्म भाग्यवान को देख सकते हैं। कैसे एक ससुर अपनी विधवा बहु के लिए लड़के की तलाश में दर-दर भटकता है। तमाम सामाजिक बहिष्कार के बावजूद ये भटकते रहकते हैं।
शुरुआती जीवन और अभिनय की ओर रुझान
संजय पांडेय का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ था। उनका बचपन आम ग्रामीण परिवेश में बीता, जहाँ अधिकतर लोग खेती या सरकारी नौकरियों की ओर ध्यान देते थे। लेकिन संजय का मन बचपन से ही रंगमंच और अभिनय में रमता था। गाँव के मेलों और नाटकों में भाग लेना उनका शौक बन गया था। उन्होंने अपने अभिनय की शुरुआत भी नुक्कड़ नाटकों और थिएटर से की।
पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने तय कर लिया था कि उनका भविष्य फिल्मों में है। यह रास्ता आसान नहीं था, लेकिन संजय ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने लखनऊ और फिर दिल्ली में थिएटर किया और अभिनय की बारिकियों को सीखा।
भोजपुरी सिनेमा में पदार्पण
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में संजय पांडेय ने अपने करियर की शुरुआत साल 2002 में की। उनकी पहली बड़ी फिल्म थी “भइया हमार दयावान”, जिसमें उन्होंने खलनायक की भूमिका निभाई। यह किरदार भले ही उनकी पहली फिल्म में था, लेकिन दर्शकों को उनका अंदाज और डायलॉग डिलीवरी इतनी पसंद आई कि वे रातोंरात चर्चा में आ गए।
उस समय तक भोजपुरी सिनेमा में नायक-नायिका केंद्रित फिल्में बनती थीं, और विलेन की भूमिका अक्सर हल्के में ली जाती थी। लेकिन संजय पांडेय ने अपने अभिनय से इस परंपरा को तोड़ दिया। उन्होंने खलनायक को एक ऐसा आयाम दिया जो कहानी का मूल हिस्सा बन गया।
सफलता की सीढ़ियाँ
संजय पांडेय ने “ससुरा बड़ा पइसावाला” (मनोज तिवारी के साथ), “निरहुआ रिक्शावाला”, “बिदाई”, “दिलवाला”, और “राजा बाबू” जैसी सुपरहिट फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई। हर फिल्म में उनका किरदार अलग होता था – कहीं वह क्रूर जमींदार होता, तो कहीं धोखेबाज़ नेता, और कहीं एक चालाक व्यापारी। लेकिन एक बात हर बार समान रहती – उनका दमदार अभिनय और डायलॉग डिलीवरी।
उनकी सबसे बड़ी खूबी यह रही कि उन्होंने कभी खुद को दोहराया नहीं। उन्होंने हर किरदार में कुछ नया करने की कोशिश की। चाहे वह एक साइको विलेन हो या फिर एक ठहाके लगाता कॉमेडियन विलेन, संजय पांडेय ने हर बार दर्शकों को चौंकाया।
संघर्ष और आलोचना
हर सफलता के पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी होती है। संजय पांडेय को भी शुरुआत में कई बार रिजेक्शन झेलना पड़ा। लोग कहते थे कि उनका चेहरा ‘हीरो’ जैसा नहीं है, और वह सिर्फ साइड रोल के लिए ठीक हैं। लेकिन उन्होंने अपने अभिनय के दम पर इन सारी बातों को झुठला दिया।
कई बार उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ी कि वे केवल खलनायक बनकर ही रह गए हैं। लेकिन उन्होंने इस छवि को ही अपनी ताकत बना लिया। उन्होंने कहा था – “अगर लोग मुझसे नफरत करते हैं, तो इसका मतलब है कि मैं अच्छा काम कर रहा हूँ। एक अच्छा विलेन ही एक हीरो को बड़ा बनाता है।”
एक कलाकार के रूप में विस्तार
हाल के वर्षों में संजय पांडेय ने नकारात्मक भूमिकाओं के साथ-साथ कुछ सकारात्मक और कॉमिक रोल्स भी निभाए। उन्होंने यह साबित किया कि वे एक बहुआयामी कलाकार हैं। फिल्म “हमार फर्ज” और “लव के लिए कुछ भी करेगा” में उनके किरदार में भावनाओं की गहराई देखने को मिली, जिसने दर्शकों को भावुक कर दिया।
इसके अलावा उन्होंने कुछ टीवी धारावाहिकों और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी काम करना शुरू किया। उनकी लोकप्रियता सीमित नहीं रही, वे बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश से लेकर नेपाल तक एक लोकप्रिय चेहरा बन गए।
निजी जीवन
संजय पांडेय निजी जीवन में बहुत ही सरल और जमीन से जुड़े इंसान हैं। वे अक्सर अपने गाँव जाते रहते हैं और स्थानीय युवाओं को अभिनय के लिए प्रेरित करते हैं। वे यह मानते हैं कि प्रतिभा किसी एक क्षेत्र की मोहताज नहीं होती और अगर सच्चा समर्पण हो, तो कोई भी मुकाम पाया जा सकता है।
विरासत और प्रभाव
भोजपुरी सिनेमा में संजय पांडेय ने खलनायकी को एक नई पहचान दी। उनके बाद कई नए कलाकारों ने विलेन के रोल में दिलचस्पी दिखानी शुरू की। उन्होंने यह साबित किया कि अभिनय सिर्फ हीरो बनने तक सीमित नहीं है – असली चुनौती तो उस किरदार में जान डालने की होती है जिसे लोग नकारात्मक मानते हैं।
संजय पांडेय की कहानी सिर्फ एक अभिनेता की कहानी नहीं है, यह एक संघर्षशील व्यक्ति की कहानी है जिसने समाज की सोच को बदला, सिनेमा की परिभाषा को बदला और यह दिखाया कि अगर आपमें लगन है, तो कोई भी किरदार छोटा नहीं होता। वे आज भी लगातार फिल्मों में सक्रिय हैं और नए कलाकारों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं।
भोजपुरी सिनेमा में वे सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक युग हैं – खलनायक से नायक तक का सफर तय करने वाले एक सच्चे कलाकार।
बिलकुल! नीचे संजय पांडेय की प्रमुख फिल्मों की सूची और उनके कुछ यादगार डायलॉग्स दिए जा रहे हैं जो भोजपुरी सिनेमा के दर्शकों के दिलों में छाप छोड़ चुके हैं।